सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

कहानी दुष्ट कौए की/ कौशल पाण्डेय

नानी के घर आते ही सोनू और मोनू उन्हें घेर कर बैठ गये। नानी उनके इस घेराव का मतलब समझ रही थीं। “हां,हां। जानती हूं तुम्हें क्या चाहिये। कहानी भी सुनाऊंगी,पहले चाय नाश्ता तो करो”। “नानी,चाय भी पीते जायेंगे और कहानी भी सुनते रहेंगे ”-- दोनों एक साथ बोल पड़े। तभी मुंडेर पर आकर एक कौआ कांव कांव करने लगा। “नानी, लगता है इसे भी कहानी सुननी है”-- सोनू ने नमकीन के कुछ टुकड़े उस कौवे की ओर डालते हुए कहा। “नहीं, नहीं। इसे मुंह लगाने की कतई ज़रूरत नहीं है। यह तो बहुत ही दुष्ट कौआ है। इसे अपने किये की काफ़ी सज़ा मिल चुकी है। देखते नहीं इसकी चोंच में घाव का कितना बड़ा निशान है”-- नानी ने बताया। “इसके ये घाव कैसे हो गया नानी?” मोनू ने कौतुहलवश पूछा। आज मैं तुम दोनों को इसी दुष्ट कौवे की कहानी सुनाउंग़ी। पिछली बार गर्मी में जब तुम दोनों आये थे, उसके कुछ दिन बाद ही सामने वाले नीम के पेड़ पर एक घोंसले में गौरैय्या ने दो अंडे दिये। जब उन अंडों से प्यारे-प्यारे बच्चे निकले तो इस कौए की नीयत खराब हो गयी। सुबह-शाम वह यही सोचने लगा कि गौरैय्या के इन बच्चों को कैसे खाया जाये। कौआ गौरेय्या से कोई डरता तो था नहीं, अत: एक दिन गौरेय्या के घोंसले के पास वाली डाल पर जाकर बैठ गया और सीधे-सीधे बोल पड़ा- “गौरैय्या, मैं तेरे बच्चों को खाना चाहता हूं।” गौरेय्या पहले तो बहुत डरी, पर उसने हिम्मत और दिमाग से काम लिया। “ठीक है, खा लेना मेरे बच्चों को, पर यह भी तो देखो कि बच्चे कितने मुलायम हैं और तुम्हारी चोंच। न जाने कहां-कहां की गंदगी इस पर लगी हुई है। जाओ पहले तालाब में अपनी चोंच धोकर आओ।” कौए को लगा, ये तो बड़ा आसान है। वह उड़कर तालाब के किनारे पहुंचा और अपनी चोंच पानी में डालकर धोने लगा। तभी तालाब ने उसे डांट दिया-“खबरदार, जो मेरे सारे पानी को अपनी गंदी चोंच से गंदा किया। जाओ पहले कोई बर्तन ले आओ। उसमें अलग से पानी लेकर तुम अपनी चोंच धो सकते हो।” कौआ तुरंत उड़कर बर्तन के पास गया- बर्तन बर्तन, आओ आओ मेरे साथ चले तुम आओ लाऊंगा मैं तुममें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। बर्तन ने कहा,“कौए भाई मैं तो चलने को तैयार हूँ, पर मेरी तली में एक छेद है। उसे चिकनी मिट्टी से भर लो, तो मैं तुम्हारे काम आ सकता हूँ”। कौआ दौड़ा दौड़ा मिट्टी के पास गया- मिट्टी मिट्टी, आओ आओ मेरे साथ चली तुम आओ बर्तन का तुम छेद भरोगी लाऊंगा मैं उसमें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। मिट्टी ने चलने में तो कोई आपत्ति नहीं की, पर कहा,“इधर मैं सूखकर कड़ी हो गयी हूँ। मुझे मुलायम बनाना होगा। यह काम तो हाथी दादा ही कर सकते हैं”। कौआ दौड़ा दौड़ा हाथी दादा के पास गया- हाथी दादा, आओ आओ मेरे साथ चले तुम आओ मिट्टी को झट नरम बनाओ जो बर्तन का छेद भरेगी लाऊंगा मैं उसमें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। हाथी ने पहले तो उसे बहुत डांटा, “तू ऐसी गंदी बातें क्यों सोचता रहता है। मेरी तरह घास-पात क्यों नहीं खाता है। तेरा पेट ही कितना बड़ा है”। पर वह यह भी समझ रहा था कि जाना तो उसे भी नहीं है। अत: उसने भी अपने भूखे होने की बात कह दी, “पहले जाओ, दो-चार टोकरी अच्छे आम के पत्ते ले आओ”। कौआ दौड़कर आम के पास गया- आम आम तुम आओ आओ मेरे साथ चले तुम आओ तुमको खाकर हाथी दादा पायेंगे कुछ ताकत ज्यादा वे मिट्टी को नरम करेंगे जो बर्तन का छेद भरेगी लाऊंगा मैं उसमे पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या को यही रहा मैं सोच। आम ने कहा, “तुम तो बिल्कुल ही मूर्ख लगते हो। देखते नहीं मेरी जड़ें ज़मीन में कितनी गहराई तक गयी हैं। मेरा यहां से हिलना क्या कोई हंसी खेल है? हां, इतना ज़रूर कर सकते हो कि बढ़ई से लोहे की आरी लाकर मेरी कुछ डालें काट कर अपना काम चला लो”। कौआ दौड़ा दौड़ा बढ़ई के पास गया- बढ़ई चाचा,बढ़ई चाचा है एक बहुत ज़रूरी काम आरी ले जानी है मुझको काटूंगा मैं उससे आम उसको खाकर हाथी दादा पायेंगे कुछ ताकत ज्यादा वे मिट्टी को नरम करेंगे जो बर्तन क छेद भरेगी लाऊंगा मैं उसमें पानी धोऊं अपनी चोंच खाऊं कैसे गौरेय्या कि यही रहा मैं सोच। बढ़ई चाचा ने उसे सहर्ष आरी पकड़ा दी। कौआ मन ही मन खूब प्रसन्न हुआ। कांटे जैसे दांतों वाली आरी को चोंच में दबाकर कौए ने ऊंची उड़ान भरी। बस फ़िर क्या था। गौरेय्या के नर्म-मुलायम बच्चों के काल्पनिक स्वाद के आगे वह आरी को छोड़ नहीं पा रहा था और आरी उसकी चोंच में घाव किये जा रही थी। घाव की तकलीफ़ जब सहन नहीं हुई तो आरी उसकी चोंच से छूट गयी और वह निढाल होकर ज़मीन पर उतर आया। उसकी चोंच की ऐसी गत हो चुकी थी कि वह कुछ भी खाने लायक नहीं रहा। “देखा सोनू, तुम्हारे फ़ेंके हुए नमकीन के टुकड़े अभी भी यह ठीक से नहीं खा पा रहा है”, नानी ने कहा। “फ़िर गौरेय्या और उसके बच्चों का क्या हुआ नानी”, मोनू पूछ बैठा। “उनका क्या होगा। बच्चे भी पूरी गौरेय्या बन चुके हैं। यहीं कहीं फ़ुदक रहे होंगे।” मोनू ने एक छोटा-सा कंकड़ उठाया और कौए को मार कर भगा दिया। सोनू हाथ में नमकीन के छोटे-छोटे टुकड़े लिये गौरेय्या को खोज रहा था। कौशल पाण्डेय हिन्दी अधिकारी आकाशवाणी, शिवाजी नगर पुणे(महाराष्ट्र) मोबाईल न0:09823198116